अहोई अष्टमी की कहानी और व्रत कथा

क्या आपको पता है कि भारत में अहोई अष्टमी की कहानी (Ahoi Ashtami Story in Hindi) न केवल मातृत्व के अनुपम प्रेम को दर्शाती है, बल्कि यह दृढ़ विश्वास और संकल्प की एक अद्भुत मिसाल भी प्रस्तुत करती है?

जब बच्चा न होने पर महिलाओं पर तरह-तरह के आरोप लगाए जाते हैं, उन्हें बेइज्जत किया जाता है और कई बार परिवार से भी बेदखल कर दिया जाता है।

भारतीय संस्कृति और परंपराओं में अहोई माता की कहानी एक ऐसा अध्याय है, जो भक्ति और आस्था का प्रतीक है। क्या आप जानते हैं कि हर साल लाखों महिलाएँ इस व्रत को संतान प्राप्ति और संतान की दीर्घायु के लिए करती हैं? इस व्रत की लोकप्रियता और महत्व अपने आप में एक अनोखी घटना है।

आइए जानते हैं इस अहोई अष्टमी व्रत कथा की प्रेरणादायक धार्मिक कहानी के बारे में।

त्योहारअहोई अष्टमी व्रत
अनुयायीहिन्दू, भारतीय, भारतीय प्रवासी
उद्देश्यसंतान की दीर्घायु
तिथिकार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी
समान पर्वकरवा चौथ, तीज, छठ
विधिउत्तर भारत के विभिन्न अंचलों में अहोईमाता का स्वरूप वहाँ की स्थानीय परम्परा के अनुसार बनता है। सम्पन्न घर की महिलाएं चाँदी की होई बनवाती हैं। धरातल पर गोबर से लीपकर कलश की स्थापना होती है। अहोईमाता की पूजा करके उन्हें दूध-चावल का भोग लगाया जाता है। तत्पश्चात एक पाटे पर जल से भरा लोटा रखकर कथा सुनी जाती है।

अहोई अष्टमी की कहानी – Ahoi Ashtami Story in Hindi

एक समय की बात है, एक गांव में एक साहूकार रहता था। जिसके 7 बेटे, 7 बहु और सरला नाम की बेटी थी।

Ahoi Ashtami Ki Kahani

दिवाली से पहले कार्तिक की बड़ी अष्टमी को साहूकार की सभी बहु और उसकी बेटी सरला सभी एक साथ जंगल में मिट्टी लेने के लिए गई थी।

जहां से सरला मिट्टी खोद रही थी वहीं पर स्याऊ माता का बच्चा था। मिट्टी खोदते समय सरला से स्याऊ माता का बच्चा मर गया था।

अपने बच्चों को मरा हुआ देख स्याऊ माता बोली “पापी औरत तुमने मेरे नवजात बच्चों की जान ले ली। अब मैं तुझे श्राप देती हूं। जिस प्रकार मैं अपने बच्चों के लिए तड़प रही हूं उसी प्रकार तू भी संतान सुख के लिए तड़पेगी। लेकिन तुझे कभी भी संतान सुख नहीं मिलेगा। मैं तेरी कोख बांध रही हूं जिससे तुझे कभी भी संतान नहीं होगी।”

फिर सरला स्याऊ माता से कहती है “मुझे माफ कर दीजिए। यह मुझसे गलती से हो गया। मुझे पता नहीं था कि यहां पर आपका बच्चा है। मैंने यह जानबूझकर नहीं किया। मुझे माफ कर दीजिए।”

साहूकार की बेटी अपने किए की माफी मांगने लगी। माफी मांगता देख स्याऊ माता बोली “मेरे मुंह से निकले शब्द वापस नहीं होते। अब यह श्राप वापस नहीं होगा। लेकिन अगर तुम्हारी जगह यह श्राप कोई और अपने ऊपर ले ले तो तुम इस श्राप से मुक्त हो सकती हो।”

फिर सरला स्याऊ माता की यह बात सुनकर अपनी सभी 7 भाभियों के पास जाती है और अपना यह श्राप अपने ऊपर लेने को कहती है।

लेकिन सरला की सभी भाभियां उसे यह श्राप अपने ऊपर लेने के लिए मना कर देती है। लेकिन सरला की सबसे छोटी भाभी कमला यह श्राप अपने ऊपर ले लेती है।

इसके बाद कमला को जो भी बच्चा होता था वह श्राप के कारण 7 दिन के अंदर ही मर जाता था। जिसके कारण कमला बहुत ही दुखी रहने लगती है।

उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि वह करें तो क्या करें। साहूकार की सभी बहु अपने बच्चों को खिलाती थी लाड़ प्यार करती थी। यह देखकर कमला को बहुत ही गुस्सा आ जाता था। और मन ही मन सोचती रहती थी कि क्या करे।

एक दिन की बात है एक दिन साहूकार के घर एक विद्वान पंडित जी आए थे। जिनको कमला ने श्राप की सारी बात बता दी थी। फिर पंडित जी ने कमला से कहा “बेटी तुम काली गाय की पूजा कराकरो। काली गाय स्याऊ माता की भायली है। वह तुम्हारी कोक छोड़ देगी और तुम्हें संतान प्राप्त होगा।”

फिर कमला पंडित जी से कहती है “ठीक पंडित जी आप जैसा कहते हैं मैं वैसा ही करूंगी”

पंडित जी के कहने पर कमला काली गाय की पूजा करने लगती है।

कमला हर रोज सुबह जल्दी उठकर काली गाय को चारा डालती थी। उसके आसपास सफाई कर देती थी।

यह देखने के लिए गौ माता सुबह जल्दी उठ जाती थी। और देखती थी की कमला बहुत ही मेहनत कर रही है।

यह देखकर गौ माता कमला को कहती है। “तू मेरी इतनी सेवा क्यों कर रही है? बता तेरी क्या इच्छा है। बता मैं तेरी सेवा से बहुत ही प्रसन्न हूं। बता तुझे क्या चाहिए।”

फिर कमला गौ माता से कहती है “गौ माता मैंने सुना है कि स्याऊ माता आपकी भायली है। उन्होंने मेरी कोख बांध रखी है। क्या आप उनसे मेरी कोख खुलवा देंगी।”

फिर गौ माता कमला से कहती है “अब तुमने कहा है तो मुझे करना ही होगा। हमें स्याऊ माता के पास जाना होगा जो यहां से बहुत दूर सात समुंदर पार रहती है।”

इसके बाद गौ माता कमला को अपनी सहेली के पास सात समुंदर पार लेकर जाती है।

रास्ते में जाते समय बहुत ही कड़क धूप थी। इसलिए गौ माता और कमला एक पेड़ के नीचे बैठ जाते हैं।

इसी पेड़ के ऊपर एक गरुड़ पंखनी के बच्चे थे। वहां पर एक सांप आ गया था। और बच्चों को खाने के लिए पेड़ के ऊपर चढ़ गया था।

तभी कमला सांप को देख लेती है। फिर कमला बच्चों को बचाने के लिए एक लाठी से उस सांप को पीट पीट कर मार देती है।

इस समय गरुड़ पंखनी आई तो वहां पर खून देखकर वह कमला को चोंच मारने लगती है। उसे लगता है की कमला ने उसके बच्चों को लाठी से मार दिया है।

फिर गरुड़ पंखनी कमला से कहती है “पापी औरत तुमने मेरे बच्चों को इतनी बेरहमी से मार दिया। मैं तुझे नहीं छोडूंगी।”

तभी कमला गरुड़ पंखनी से कहती है “कि मैंने तुम्हारे बच्चों को नहीं मारा है। बल्कि मैंने तो तेरे बच्चों की रक्षा की है। यह देख यह सांप तेरे बच्चों को खाने आया था। मैंने तो इसे मारा है।”

फिर गरुड़ पंखनी कमला से कहती है “मांग तुझे अब क्या मांगना है। मैं तेरे इस उपकार के बदले तेरी क्या सहायता कर सकती हूं।”

फिर कमला गरुड़ पंखनी से कहती है “कि यहां से सात समुंदर पार स्याऊ माता रहती है। हमें तुम उनके पास ले चलो।”

फिर गरुड़ पंखनी गौ माता और कमला को अपनी पीठ पर बिठाकर स्याऊ माता के पास ले जाती है।

स्याऊ माता गौ माता को देखकर कहती है “आओ बहन बहुत दिनों बाद आई हो। मेरे सिर में जुएं पड़ गई हैं। जरा इन्हें निकाल दोगी।”

फिर कमला कहती है “मैं निकाल देती हूं। आप परेशान मत होइए” और फिर कमला स्याऊ माता के सिर की सभी जुएं निकाल देती हैं।

फिर स्याऊ माता कमला से कहती है “अरे वह आनंद आ गया! तुमने तो मेरे सिर की सभी जुएं निकाल दी। अब मैं तुम्हें आशीर्वाद देती हूं – तुम्हारे सात बेटे और सात बहु हों।”

फिर कमला स्याऊ माता को कहती है “माता आपने तो मेरी कोख बांध रखी है, मुझे सात बेटे कहाँ से होंगे।”

फिर स्याऊ माता कमला से कहती है। “अरे तुमने तो मुझे ठग लिया। लेकिन अब वचन दिया है तो वापस नहीं हटूंगी। जाओ तुम घर पर जाओ तुझे तेरे सात बेटे और सात बहु मिलेगी। अब जा तू घर जा। घर जाकर अहोई माता का व्रत करना और सात कढ़ाई बनाना।”

जब कमला घर गई तो उसने देखा कि उसके सात बेटे और सात बहुएं थी। तब वह बहुत खुश हो जाती है।

तब उसने अहोई माता का व्रत रखा और साथ में कड़ाई बनाई और अहोई माता का उद्यापन किया।

स्याऊ माता के आशीर्वाद से कमला का घर खुशी से चहक उठा था।

उधर साहूकार की सभी बहू कहने लगी “अरे जल्दी पूजा कर लो। कहीं पर छोटी बहू बच्चों को याद करके रोने ना लगे।”

फिर साहूकार की एक बहू अपने बेटे से कहती है “बेटा चिंटू जाओ तुम्हारी चाची क्या कर रही है देखकर आओ।”

फिर अपनी मां की बात सुनकर चिंटू अपनी चाची को देखने जाता है।

चिंटू अपनी चाची के घर जाता है तो देखता है कि वहां पर बहुत ही चहल-पहल हो रही है।

फिर वह आकर सारी बात अपनी मां को बताता है। फिर सभी जेठानी दौड़कर कमला के घर जाती है और देखते हैं की कमला के घर बहुत ही चहल पहल हो रही थी उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था।

वह देखती है कि कमला अपनी सात बहु के साथ अहोई माता का उद्यापन कर रही थी।

फिर वे सभी कमला को कहती है “अरे दीदी तुम्हारी तो कोख स्याऊ माता ने बांध दी थी ना। फिर तुम्हारी संतान कैसे हुई।”

फिर कमला उनसे कहती है “कि आपने तो अपनी कोख बंधवाई नहीं। लेकिन मैंने बंधवा ली थी। लेकिन अब स्याऊ माता के आशीर्वाद से मेरे यह सात बच्चे हैं।”

अब कमला अपने परिवार के साथ खुशी-खुशी रहने लगती है।

ऐसे ही एक कहानी है अवसान माता की, जरुर पढ़िए।

अहोई अष्टमी का क्या महत्व है?

अहोई अष्टमी का महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक होता है, यह व्रत माताएं अपने बच्चों की दीर्घायु, सुखी जीवन और मंगल कामना के लिए रखती हैं।

अहोई अष्टमी में क्या किया जाता है?

अहोई अष्टमी में महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर नहाती हैं, पूरे दिन उपवास रखती हैं, और शाम को सूर्यास्त के बाद माता पार्वती की पूजा करती हैं।

अहोई अष्टमी लड़कों के लिए है या लड़कियों के लिए?

अहोई अष्टमी का व्रत पहले केवल पुत्रों के लिए रखा जाता था, लेकिन समय और सोच के बदलने के साथ अब यह व्रत पुत्री और पुत्र, दोनों के लिए रखा जाता है।

अहोई अष्टमी की पूजा में क्या क्या लगता है?

अहोई अष्टमी की पूजा में दूध-चावल का भोग, चांदी की अहोई, और जल से भरा लोटा लगता है, और इसके अलावा गोबर से लीपकर कलश की स्थापना की जाती है।

अहोई अष्टमी के दिन क्या खाना चाहिए?

अहोई अष्टमी के दिन व्रत तोड़ने के लिए सिंघाड़े का हलवा, चना, और गन्ने का रस खाना चाहिए, और मासाहारी भोजन, शराब, प्याज और लहसुन से परहेज करना चाहिए।

सारांश

अहोई अष्टमी की कहानी हमें बताती है कि कठिनाइयों में भी हमें अपने लक्ष्यों से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। सरला ने अपने सपने को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत की और अंत में सफलता प्राप्त की।

अहोई माता की कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें किसी भी परिस्थिति में आसान रास्ता नहीं अपनाना चाहिए। सरला ने अपनी कठिनाइयों का सामना करते हुए माता बनने का सपना साकार किया।

आज के युग में हमें सरला की तरह दृढ़ संकल्प और विश्वास रखने की ज़रूरत है। अगर हम अपने लक्ष्यों पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करेंगे तो सफलता अवश्य मिलेगी।

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