Train No 653 Story in Hindi – ट्रेन नंबर 653 की दर्दनाक कहानी

क्या आपने कभी ऐसी रेल दुर्घटना के बारे में सुना है जिसमें पूरी ट्रेन ही समुद्र में डूब गई हो? आज हम Train No 653 Story in Hindi के इसी बिषय में जानेंगे।

बीते दिनों की सबसे बड़ी रेल त्रासदी में एक पूरी ट्रेन समुद्र में डूब गई थी। 22 दिसम्बर 1964 की रात को श्रीलंका के तटीय शहर धनुषकोडी पर एक बड़े तूफ़ान के कारण ट्रेन नंबर 653 पूरी तरह से समुद्र में डूब गई थी। इस हादसे में लगभग 200 लोगों की मौत हो गई थी।

यह दर्दनाक घटना अपने आप में बहुत ही विचित्र और डरावनी थी। चलिए जानते हैं उस रात वाकई क्या हुआ था जिससे एक पूरी ट्रेन समुद्र का शिकार हो गई। ट्रेन नंबर 653 की कहानी न सिर्फ रोमांचक है बल्कि हम सभी के लिए एक सबक भी है। ऐसे ही फ्लाइट 914 का क्या हुआ था जरुर पढ़िए।

शीर्षकट्रेन नंबर 653 की कहानी
मूलप्राकृतिक आपदा
पहली बार सूचित22 दिसंबर 1964
स्थानधनुषकोडी रेलवे स्टेशन (तमिलनाडु)
मुख्य पात्रट्रेन नंबर 653, 110 से 200 लोग, तूफान

Train No 653 Story in Hindi – 1964 में पंबन ब्रिज का क्या हुआ?

15 दिसंबर 1964 को भारत ने साउथ अंडमान के समंदर में आने वाले तूफान की पहचान कर ली थी। इसका मतलब यह था कि बारिश और तूफान बस दस्तक देने वाले हैं। सब कुछ सामान्य ही लग रहा था तब तक किसी को नहीं पता था कि 45 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही हवा एक तूफान का रूप लेने वाली है।

Train No 653 Story in Hindi

21 दिसंबर को अंडमान से ज्यादा ताकत से यह तूफान पश्चिम की तरफ बढ़ने लगा। 22 दिसंबर को श्रीलंका के उत्तरी तट पर इस तूफान ने दस्तक दी। इस तूफान की रफ्तार लगभग 110 किलोमीटर प्रति घंटा की थी।

तट पर टकराने के बाद यह तूफान West North West की तरफ बढ़ने लगा। फिर इस तूफान की रफ्तार लगभग 280 किलोमीटर प्रति घंटे की हो गई।

22 तारीख को शाम का वक्त हुआ होगा। उस श्याम Mr. Sundar Raj जो धनुषकोडी रेलवे स्टेशन के कर्मचारी थे। वे अपनी ड्यूटी खत्म करके अपने घर चले गए थे। रात के करीब 9:00 बजे बहुत ही तेज हवा चलने लगी थी जिसके कारण मौसम बहुत ही खराब हो गया था। और वहां के रहने वाले लोगों के घरों में भी पानी चला गया था।

किसी को पता नहीं था कि यह क्या हो रहा है। उधर धनुषकोडी रेलवे स्टेशन के पास Train No. 653 Pamban-Dhanushkodi की ट्रेन जो पांबन से धनुषकोडी तक लोगों को लाती थी। फिर लोग वहां से श्रीलंका जाते थे।

उस रात करीब 23:55 मिनट हुए होंगे। ये ट्रेन पांबन रेलवे स्टेशन से निकल चुकी थी। और करीब धनुषकोडी रेलवे स्टेशन तक पहुंचने वाली थी।

तभी अचानक तूफान की रफ्तार बहुत ही बढ़ चुकी थी। और चारों तरफ बहुत ही अंधेरा होने के कारण और सिग्नल में प्रॉब्लम आने के कारण ट्रेन को स्टेशन के बाहर ही रोकनी पड़ी। और काफी समय तक सिग्नल नहीं मिलने के कारण ट्रेन के पायलट को सिग्नल नहीं मिला तो उन्होंने रिस्क लेने की ठानी और बिना सिग्नल मिले ही ट्रेन को उन्होंने आगे चला दी।

लेकिन समुद्र में लहर बहुत ही ज्यादा थी। एक ऐसी लहर आई जो ट्रेन को अपने साथ ही बहा ले गई।

ट्रेन नंबर 653 में कुल 6 डिब्बे थे। और उस लहर के साथ सभी डिब्बे समुद्र में डूब गए। आंकड़ों की माने तो लगभग ट्रेन नंबर 653 में ट्रेन के स्टाफ को मिलाकर 110 लोग ट्रेन में सवार थे। जो सभी लोग ट्रेन के साथ समंदर में बह गए।

और कुछ आंकड़े यह भी बताते हैं कि कुछ पैसेंजर बिना टिकट के ट्रेन नंबर 653 में सवार थे उनकी भी संख्या काफी ज्यादा हो सकती है। कई लोग अभी बताते हैं कि उस ट्रेन में लगभग 180 से 200 लोग थे। जो सभी उस रात समुंदर में डूब गए थे।

दोस्तों उसके बाद वह तूफान कई घंटे तक अपना प्रकोप दिखाती रही।

और उस रात अकेले धनुषकोडी में ही लगभग 1000 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गवा दी थी।

कहते हैं कि पांबन के तट पर आया यह बहुत ही बड़ा तूफान था। जिसके निशानी आज भी आपको धनुषकोडी के अंदर मिल जाती है। उखड़ी हुई रेल की पटरियां, स्टेशन, घर यह सभी एक ही कहानी की याद दिलाते हैं; कि सच में वह बहुत ही बड़ी प्राकृतिक आपदा थी।

पांबन ब्रिज जो मंडओपन को पांबन से जोड़ता है वह ब्रिज उस तूफान के कारण बहुत ही तहस-नहस हो चुका है। जिसके निशान आज भी आपको मिल जाते हैं।

1964 में पंबन ब्रिज का क्या हुआ?

1964 में एक साइक्लोन के कारण पंबन ब्रिज छतिग्रस्त हो गया था।

क्या पंबन ब्रिज सुरक्षित है?

हां, पंबन ब्रिज सुरक्षित है और इसे 2024 में नवीनीकरण के बाद फिर से खोला जा सकता है।

सारांश

इस Train No 653 Story in Hindi के बाद से ट्रेन की सुरक्षा और मौसम के पूर्वानुमान को लेकर ज्यादा सजगता बरती जाने लगी। लेकिन फिर भी सवाल ये उठता है कि क्या आज भी हम ऐसी ही लापरवाही का शिकार हो सकते हैं?

1964 में जिस तरह तूफान की चेतावनी की अनदेखी की गई, क्या आज भी मौसम विभाग की भविष्यवाणियों को गंभीरता से नहीं लिया जाता? और सबसे बड़ा सवाल: क्या आज भी कोई ट्रेन अनियंत्रित होकर समुद्र में समा जाने का खतरा टला हुआ माना जा सकता है?

आइए, हम सभी को मिलकर सतर्क रहना होगा और सावधानियाँ बरतनी होंगी। तभी भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है।

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